अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला, वह अपूर्व था। सुन्दरियों के आसिंजनकारी नूपुर चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था, कोमल कैपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल् अलकों की अचंचल शोभा को सौ गुना बढ़ा देता देतां था।

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