निकसि कमंडल तैं उमंडि नभ-मंडल-खंडति । धाई धार अपार वेग सौं वायु विहंडति ।। भयौ घोर अति शब्द धमक सौं त्रिभुवन तरजे । महामेघ मिलि मनहु एक संगहिं सब गरजे ।।

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